ऑपरेशन सिंदूर भारतीय सशस्त्र बलों और भारतीय हथियारों की सफलता का नया प्रतिमान बन कर उभरा है। इस सफलता के कई रणनीतिक और तथा तकनीकी आयामों ने देश-दुनिया का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया, लेकिन रणनीतिक संचार के मोर्चे पर जिस प्रभावी और मारक ढंग से संदेशों का सम्प्रेषण किया गया, वह विशेष रूप से उल्लेखनीय है ।
रणनीतिक संचार के मोर्चे पर मिली सफलता इसलिए उल्लेखनीय हो जाती है क्योंकि पिछले कुछ युद्धों के बाद यह धारणा बन गई थी कि भारत युद्ध अथवा संघर्ष तो जीत जाता है, लेकिन देश-दुनिया तक उसकी सटीक ‘मेसेजिंग’ करने में विफल हो जाता है। इसके कारण विजय के बाद भी एक संशय की स्थिति बन जाती है। संशय की यह स्थिति भारत के आत्मबल और वैश्विक स्वीकृति को बुरी तरह से प्रभावित करती रही है।
‘बालाकोट एयरस्ट्राइक’ के बाद यह बात विशेष रूप से रेखांकित की गई थी कि भारत ने एक झटके में पकिस्तान की नाभिकीय छतरी को पूरी छिन्न-भिन्न कर दिया । यह पिछले दो दशकों में भारत द्वारा प्राप्त किया गया सबसे महत्वपूर्ण रणनीतिक लक्ष्य था। यह पाकिस्तान के प्रति भारतीय नागरिकों में नए सिरे से धारणा बनाने और नाभिकीय भयदोहन से बाहर निकालने का यह स्वर्णिम अवसर था।
दुर्भाग्यवश, भारत में विमर्श यह बना दिया गया कि हवाई हमले में आतंकवादियों को कुछ नुकसान हुआ भी है कि नहीं? और यह भी कि कितनी संख्या में आतंकवादी मारे गए हैं? तब प्रश्न उठाने वालों ने इस बात का ध्यान नहीं रखा कि धारणा के युद्ध में संख्या के साथ मनोवैज्ञानिक बदलावों का अधिक महत्व होता है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत संख्या के रणनीतिक जाल में नहीं उलझा। अपने इस बहुचर्चित बयान कि हमारा काम दुश्मनों को नुकसान पहुंचाना है, शवों को गिनना नहीं के जरिए एयर मार्शल एके भारती ने यह स्पष्ट संकेत दिए कि इसबार सशस्त्र बल संख्या के भूलभुलैया में रणनीतिक और धारणा के मोर्चे पर अर्जित की गई उपलब्धियों को गंवाना नहीं चाहते।
इस ऑपरेशन के दौरान सशस्त्र बलों की प्रभावी और मारक‘संचार रणनीति’ की झलक सशस्त्र बल की प्रेस ब्रीफिंग में भी स्पष्ट रूप से दिखी। बैसरन में धर्म पूंछकर एवं केवल पुरुषों को निर्मम ढंग से निशाना बनाकर आतंकवादियों ने भारतीय सैन्य और सत्ता प्रतिष्ठान को कुछ निश्चित ‘रणनीतिक’ संदेश भेजे थे। ऑपरेशन सिंदूर के बाद दो महिला सैन्य अधिकारियों द्वारा प्रेस ब्रीफ़ करने के निर्णय को इस पृष्ठभूमि में देखने पर रणनीतिक संचार की दृष्टि से इसकी उत्कृष्टता का अनुमान बेहतर ढंग से लगाया जा सकता है । इस एक प्रेस ब्रीफिंग ने अनेकों लक्षित समूहों को संदेश दिया। सबसे रोचक संदेश पाकिस्तानी सेना और वहाँ की महिलाओं के लिए था। यह महिलाओं को कमजोर रखने और मानने की पाकिस्तानी और आतंकी मानसिकता पर आक्रमण से काम नहीं था।
इस प्रेस ब्रीफिंग की एक अन्य महत्वपूर्ण विशेषता इसका भाषाई संयोजन था । प्रेस ब्रीफिंग में कर्नल सोफिया कुरैशी ने ऑपरेशन सिंदूर से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी पहले हिंदी में दी। समानांतर रूप से विंग कमांडर व्योमिका सिंह ने अंग्रेजी में भी सूचनाएँ साझा की। जिस देश में हाल के वर्षों तक रक्षा, विदेश और वित्त संबंधी चिंतन और विमर्श पर अंग्रेजी का एकाधिकार माना जाता रहा हो, जिस देश में लगभग एक दशक पहले तक रक्षा और विदेश मंत्रालय में भारतीय भाषाओं के पत्रकारों और उनके प्रश्नों की पहुँच नगण्य रही हो, वहाँ पर इतनी महत्वपूर्ण प्रेस ब्रीफ़ की शुरुआत हिंदी में करना कइयों को आश्चर्य में डाल सकता है।
इसे यदि रणनीतिक संचार की दृष्टि से देखें तो यह भाषा प्रेम अथवा भाषाई पहचान को रेखांकित करने भर का मामला नहीं था, बल्कि यह संदेशों को अधिक प्रभाव और सहजता के साथ प्रेषित कर कुछ रणनीतिक लक्ष्यों को प्राप्त करने की कोशिश की गई थी। यह अपने संदेशों को पहले ही झटके में धरातल तक पहुंचाने और धारणा-निर्माण के क्षेत्र में खुद को आगे रखने की सोची समझी रणनीति थे। यह प्रेस ब्रीफिंग इस बात की स्वीकारोक्ति थी कि परिवेश की भाषा सर्वाधिक व्यापकता और सहजता के साथ संदेशों को सामान्य नागरिक तक पहुँचाती है।
बाद में एयर मार्शल ए. के. भारती ने भारतीय रणनीति को समझाने के लिए रामचरित मानस की जिस चौपाई का उपयोग किया, वह भी परिवेश की भाषा के सामर्थ्य के उपयोग का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। इस चौपाई का उपयोग सदियों से भारतीय जनमानस उद्दंड को ‘सही रास्ते पर लाने की नीति’ के एक सशक्त मुहावरे के रूप में करता रहा है । ‘विनय न मानत जलधि जड़ गए तीन दिन बीति। बोले राम सकोप तब भय बिनु होइ न प्रीति’ में निहित संदेश इतने स्पष्ट, सटीक हैं और पहुँच इतनी विस्तृत है कि इसके उपयोग के बाद इसको आगे व्याख्यायित करने की आवश्यकता नहीं रह जाती। इस चौपाई के उपयोग ने रणनीतिक चिंतकों और सामान्य भारतीयों के बीच एक संवादसेतु का निर्माण किया। इससे एक ही झटके में दूरदराज के गाँव तक भारतीय सैन्य प्रतिष्ठान की नीति और विजय की कथा को पहुँचा दिया।
प्रश्न यह उठता है युद्ध में ‘अपनी भाषा’ इतनी महत्वपूर्ण क्यों हो गई है? और यह भी कि क्या भारत के अतिरिक अन्य देशों ने भी हाल के दिनों में युद्ध और सुरक्षा के मोर्चे पर परिवेश की भाषाओं को प्राथमिकता देना प्रारंभ किया है। इसका उत्तर युद्ध की प्रकृति और स्वरूप में आए बदलावों में छिपा है। और इसी के कारण वैश्विक स्तर पर परिवेश की भाषाओं में रणनीतिक और सैन्य सूचनाएँ देने का प्रचलन बढ़ा है।
समसामयिक युद्धशैली में, जिसे हाइब्रिड वॉरफेयर कहा जाता है, युद्ध के एक बड़ा हिस्सा धारणा के मोर्चे पर लड़ा जा रहा है, और इस तरह के युद्ध में अपने नागरिकों की धारणा सबसे महत्वपूर्ण होती है। वैश्विक धारणाएँ आपके प्रतिकूल हों तो उनका प्रबंधन किया भी जा सकता है, लेकिन यदि घरेलू मोर्चे पर ही युद्ध के बारे में धारणाएँ प्रतिकूल हो जाएँ तो नीति-निर्णयन की प्रक्रिया और सैन्य मनोबल दोनों बुरी तरह अपंग हो जाती हैं। घरेलू मोर्चे के अतिरिक्त अन्य देशों से भी वैधता और समर्थन प्राप्त करने के लिए परिवेश की भाषाओं के उपयोग का चलन बढ़ा है। इस परिदृश्य में वैधता और समर्थन प्राप्त करने में परिवेश की भाषा की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो गई है।
इसका एक उदाहरण तब देखने को मिला जब 7 अक्टूबर 2023 के हमलों के बाद भारत में इजरायली दूतावास ने हमले की स्थिति स्पष्ट करने और सहयोग मांगने के लिए हिंदी के साथ अन्य भारतीय भाषाओं में भी ट्वीट किए । 11 अक्टूबर 2023 को भारत में इजरायली दूतावास के ट्विटर हैंडल ‘Israel in India’ ट्वीट करते हुए लिखा कि ’हमास आतंकवादियों ने बिस्तरों में सो रहे बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों की बेरहमी से हत्या कर दी। आंखें मत मूदें। इस हत्याकांड का सच साझा करें। इसके साथ ही हैशटैग, बैनर भी ट्वीट किए गए। संदेशों में अधिक से अधिक स्थानीयता का समावेश करने की कोशिश की गई। स्थानीय भाषा प्रयोग ने भारत में इजरायल के पक्ष को दूर-दराज के क्षेत्रों तक पहुंचाने में मदद की।
इसलिए, अब सुरक्षा और सैन्य चिंतन किसी विशिष्ट भाषा तक सीमित रहने वाले नहीं है। युद्ध का एक प्रमुख तथा निर्णायक मोर्चा ‘अपनी भाषाएं’ बनने वाली हैं। हाइब्रिड वॉरफेयर में दुश्मन को उसकी भाषा में समझाना एक प्रभावी नीति है, लेकिन अपने नागरिकों और मित्रों को उनकी ‘अपनी भाषा’ में समझाना विजय की मूलभूत रणनीति बन गई है । इसलिए, आने वाले दिनों में भारतीय सैन्य प्रतिष्ठान और एडीजीपीआई यदि बहुभाषी होकर संवाद करते दिखें, तो इसमें किसी को, किसी भी तरह का आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
2024-04-08
2024-04-08
- बाबूराव विष्णु पराड़कर
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अत्यंत रोचक लेख। रणनीतिक संचार में "स्वभाषा" के आयाम को रेखांकित करता यह लेख हाइब्रिड वारफेयर के क्षेत्र में एक नवीन दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है।