‘आकाश’ में अपने प्रभुत्व को देख भारतीय आकांक्षाएं भी आसमान पर पहुँच गई थी, इसलिए सिंधु जल संधि को स्थगित करने और ब्रह्मोस के हमलों के बाद भी यदि लोगों को लगता है की भारत को अभी नहीं रुकना चाहिए था, तो इसका स्वागत किया ही जाना चाहिए। आतंकवाद से लंबी लड़ाई में यह व्यग्रता महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है।
संभवतः यह भारतीयों के लिए पहला अनुभव था जब भारत-पाक के बीच लड़े जा रहे युद्ध की तपिश जमीन तक नहीं पहुँच रही थी। अधिकांश ड्रोन और मिसाइल्स हमलों को भारतीय मिसाइल सुरक्षा प्रणाली आसमान में निष्प्रभावी बना दे रही थी । रात में पाकिस्तानी हमलों के निष्प्रभावी बनाए जाने के कवरेज ने आम भारतीयों में न केवल अपने सुरक्षा प्रतिष्ठान के बारे में गजब का आत्मविश्वास पैदा किया बल्कि इस संघर्ष के निष्कर्ष को लेकर उनकी आकांक्षाओं को भी आसमान पर पहुँचा दिया। भारतीय मिसाइल सुरक्षा प्रणाली द्वारा हत्फ श्रेणी की मिसाइल को सिरसा के नजदीक मार गिराए जाने के बाद यह भाव और भी मजबूत हुआ कि भारत के पास अभेद्य सुरक्षा कवच है।
इन आकांक्षाओं को तब और भी पंख लग गए जब भारतीय वायुसेना के हमलों के दौरान पाकिस्तानी मिसाइल सुरक्षा प्रणाली एकदम से पंगु दिखी। भारत पाकिस्तान के किसी भी कोने में स्थित अपने लक्ष्यों को मनमाफिक ढंग से ‘टारगेट’ कर रहा था और उसका कहीं पर कोई प्रतिरोध नहीं नजर आ रहा था।
इसमें रावलपिंडी स्थित नूरखान हवाई अड्डे और चकवाल में स्थित मुरीद हवाई अड्डे पर भारतीय हमले ने तो जैसे पाकिस्तान के हवाई सुरक्षा तंत्र की रीढ़ ही तोड़ दी। नूरखान हवाई अड्डे पर हवाई हमले ने पाकिस्तान सैन्य प्रतिष्ठान की प्रतिष्ठा को ही जमींदोज कर दिया। नूरखान हवाई अड्डा पाकिस्तान की वायवीय आवागमन के लिए ‘नर्व सेंटर’ की तरह काम करता रहा है। यहीं पर उसका मुख्य रडार प्रणाली भी स्थापित था । इसी तरह, मुरीद हवाई अड्डे पाकिस्तान का ड्रोन वॉरफेयर का मुख्यालय स्थित है। भारत ने इन्हें निशान बनाकर दोनों देशों की क्षमताओं और आत्मविश्वास के अंतर को दुनिया के सामने ल दिया।
इस परिस्थिति में भारतीय आकांक्षाओं का बढ़ जाने सहज ही था। जिस तरह से रावलपिंडी स्थित हवाई अड्डे को निशाना बनाया गया, उससे भी यह संदेश गया कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का लक्ष्य अब केवल आतंकी अवसंरचना को ध्वस्त करने तक सीमित नहीं रह गई है, बल्कि संभवतः यह पीओजेके को अपने साथ लेने अथवा बलूचिस्तान को एक अलग राष्ट्र के रूप में स्थापित करने तक विस्तृत हो गया है।
ऐसी स्थिति में जब यकायक युद्ध विराम की खबर आई तो ऐसा लगा जैसे दशकों से देखा जाने वाला एक स्वप्न अधूरा रह गया। भारत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ से जो बड़े लक्ष्य प्राप्त किए, आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई मे जो कठोरता दिखाई गई, पाकिस्तान की वास्तविक युद्धक क्षमता की जिस तरह से कलई खुली, चीनी हथियारों की जिस तरह से भद्द पिटी और भारतीय हथियारों ने अपनी मारकता और सटीकता से जिस तरह विश्व आश्चर्य चकित किया, सभी कुछ नेपथ्य में चल गया।
स्थिति तब और अजीब हो गई जब ऑपरेशन सिंदूर की तुलना 1971 के भारत-पाक युद्ध से की जाने लगी, जबकि ऑपरेशन सिंदूर को घोषित लक्ष्य आतंकी अवसंरचना पर प्रहार करना भर था। तब पाकिस्तान ने भारत के 10 से अधिक सैन्य हवाई अड्डों पर हमला कर दिया था, और तत्कालीन भारतीय नेतृत्व ने इसे युद्ध की कार्रवाई मानते हुए जवाबी कारवाई की थी। इसके उलट इस बार भारत ने पाकिस्तान के 10 से अधिक सैन्य हवाई अड्डों पर हमले कार्रवाई की, और पाकिस्तान जवाब देने की हिम्मत भी जुटा सका। इसके बजाय वह युद्ध-विराम पर सहमत हो गया। 1971 में भारत ने एक पूर्ण युद्ध लड़ा था, जबकि ऑपरेशन सिंदूर एक आतंकी घटना के बाद एक प्रभावी जवाबी कार्रवाई भर थी । तब दोनों देशों के पास नाभिकीय हथियार नहीं था, जबकि अब दोनों देशों के पास नाभिकीय हथियार हैं। और भारत ने पाकिस्तान के नाभिकीय हथियार के उपयोग करने के धमकी को दरकिनार कर जवाबी कारवाई की।
इसलिए दोनों संघर्षों के लक्ष्य और विस्तार में जमीन-आसमान का अंतर था। और इनके बीच तुलना संभव ही नहीं थी। यदि ऑपरेशन सिंदूर की उपलब्धियों का आकलन 26/11 के मुंबई हमलों के संदर्भ में किया जाए तो सार्थक निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं, क्योंकि दोनों की पृष्ठभूमि में आतंकी घटनाएँ थीं। तब भारत की तरफ से कोई जवाबी कार्रवाई नहीं की गई थी, और इस बार सिंधु जल संधि को स्थगित करने जैसे निर्णायक कदम उठाने के बाद ब्रह्मोस 9 आतंकी ठिकानों को ठिकाने लगा दिया। जब पाकिस्तानी सेना ने राष्ट्रीय संप्रभुता के नाम पर इसका जवाब देने की कोशिश की तो उसके 10 सैन्य हवाई अड्डों और हवाई सुरक्षा तंत्र को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया गया। युद्ध-विराम के समय यह पूर्व शर्त रख दी गई कि अब से कोई भी आतंकी हमला युद्ध की कार्रवाई जाएगा। इस तरह ऑपरेशन सिंदूर तात्कालिक रूप से भौतिक और मनोवैज्ञानिक लक्ष्यों को तो प्राप्त करने में सफल रहा ही, आतंकवाद पर दूरगामी प्रहार की पृष्ठभूमि भी तैयार कर दी। इस संदर्भ में यह बिन्दु को भी अवश्य याद रखा जाना चाहिए कि एक सैन्य कार्रवाई से आतंकवाद को कहीं भी निर्मूल नहीं किया जा सका है। सैन्य कार्रवाई तात्कालिक दबाव तो बना सकती है, लेकिन आतंकवाद को पूरी तरह से खत्म करने के लिए उस मजहबी विचारधारा को खत्म करना जरूरी है, जो घृणा और हिंसा के बीज बोती है।
इसलिए यदि अभी युद्ध-विराम को लेकर भारतीय जनमानस में व्यग्रता दिख रही है और वह बड़े लक्ष्यों को प्राप्त करने की बात कर रही है तो इसे सकारात्मक ढंग से ही लिया जाना चाहिए। यह व्यग्रता आतंकवाद से होने वाले दूरगामी संघर्ष में राष्ट्रीय संकल्प को मजबूती ही देगी। हां, उन लोगों के बहुत गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं है, जो एक दिन शांति एवं मानवता और दूसरे दिन युद्ध और राष्ट्रीयता की बात करने लगते हैं।
2024-04-08
2024-04-08
- बाबूराव विष्णु पराड़कर
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