लम्बे समय से ‘हायब्रिड वारफेयर’ झेल रहा भारत, पहली बार जवाब भी उसी शैली में दे रहा है

22 अप्रैल 2025 को पहलगाम के बैसरन में पर्यटकों के नरसंहार के बाद भारत सतत, क्रमवार और प्रभावी ढंग से पाकिस्तान को प्रत्युत्तर दे रहा है। इस जवाबी कार्रवाई में अभी तक परम्परागत युद्ध के ‘विजुअल्स’ दिख नहीं रहे हैं । दूसरी तरफ, हाइब्रिड वॉरफेयर तथा उसकी विशेषताओं से भारतीय जनमानस का अभी तक ठीक ढंग से परिचय नहीं हुआ है। इसीलिए,भारतीय प्रत्युत्तर और उसके  प्रभाव का सही ढंग से आकलन भी नहीं हो पा रहा है। यदि हाइब्रिड वॉरफेयर के संदर्भों में देखें तो भारत का जवाब बहुत घातक और दूरगामी दिखता है।

भारतीय जवाब में सबसे उल्लेखनीय सिंधु जल संधि को तुरंत प्रभाव से स्थगित करना है। यह भारत की तरफ से उठाया गया एक निर्णायक कदम है, जिसमें स्पष्ट संदेश और व्यापक प्रभाव निहित हैं। इस संधि के अस्तित्व में आने के बाद भारत और पाक के बीच तीन युद्ध हुए, लेकिन यह संधि अप्रभावित ही रही। इसलिए इस संधि का स्थगित होने की गूंज और मारकता एक निर्णायक युद्ध से कहीं अधिक ही है, अंतर केवल इतना है कि इसमें न कोई गोला-बारूद इस्तेमाल हुआ और न ही किसी तरह की क्षति उठानी पड़ी।

बैसरन में हुए नरसंहार के बाद पाकिस्तान इतनी बड़ी कार्रवाई के लिए बिलकुल तैयार नहीं था। बाद में उसने सिंधु जल संधि को प्रभावित करने के किसी भी प्रयास को ’एक्ट ऑफ वार’ बताया। लेकिन भारत तो उसे स्थगित करने की घोषणा पहले कर ही चुका था। यदि पाकिस्तान को तनिक भी अंदेशा होता कि भारत सिंधु जल संधि को स्थगित करने का निर्णय ले सकता है, तो वह पहले ही ’एक्ट ऑफ वार’ के मुद्दे पर  दुष्प्रचार अभियान अथवा मनोवैज्ञानिक अभियान ( डिस्इन्फार्मेशन कम्पेन और सायकोलॉजिकल ऑपरेशन) चलाने की कोशिश करता और इससे भारत और सम्पूर्ण विश्व को दबाव में लेने की कोशिश करता। ठीक वैसे ही जैसे अभी वह जम्मू-कश्मीर को ’न्यूक्लियर फ्लैशप्वाइंट’ बताकर वैश्विक समर्थन हासिल करने करने और भारत पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है। सिंधु जल संधि को तत्काल स्थगित कर भारत ने उसे ऐसा न करने की समय और अवसर ही नहीं दिया। सिंधु जल संधि को स्थगित करके लम्बे समय से हायब्रिड वारफेयर झेल रहे भारत ने उसी शैली में अब तक का सबसे घातक जवाब दिया है।

भारत में बहुत से लोगों ने सिंधु जल संधि को स्थगित करने का अर्थ यह निकाला कि सिंधु और सहायक नदियों के जलप्रवाह को भारत पूरी तरह से अवरुद्ध कर देगा। इस पर प्रश्न भी उठे कि क्या भारत के पास इतनी क्षमता है कि सिंधु नदी के प्रवाह को पूरी तरह से रोक दे। लेकिन इस संधि को स्थगित का एकमात्र लक्ष्य तत्काल जल-प्रवाह को पूरी तरह से रोकना था भी नहीं। इसका तात्कालिक लक्ष्य तो जल-भंडारण क्षमता की जानकारी न प्रदान करना ही प्रतीत होता है। और मात्र जानकारी न देकर भारत पाकिस्तान और वहां कृषि और उसकी युद्ध-क्षमताओं को किस हद प्रभावित कर सकता है, इसका अंदाजा पाकिस्तान को अच्छे से है।

फसल की बुवाई के समय कम पानी छोड़ने और फसल कटाई के समय अधिक पानी छोड़ने के क्या प्रभाव हो सकते हैं यह तो आम किसान भी जानता है। और पानी के प्रवाह की जानकारी न देने से पाकिस्तान ऐसी स्थितियों को संभालने की स्थिति में बिल्कुल भी नहीं होगा। एक अन्य बात यह भी है कि जल-प्रवाह और उसकी तीव्रता की सटीक जानकारी न होने पर यह निश्चित करना भी मुश्किल  होगा कि भारत पानी रोक भी रहा है अथवा नहीं। सिंधु जल संधि के स्थगित करने की घोषणा के एक सप्ताह के भीतर चेनाब और झेलम के जलस्तर में जिस तरह अप्रत्याशित उतार-चढ़ाव देखने को मिला है,उसमें पाकिस्तान के लिए गहरे संदेश छिपे हुए हैं।

सिंधु जल संधि को स्थगित करने से पाकिस्तान में पहले से ही पानी को लेकर चल रहा संघर्ष और भी बढ़ सकता है। पाकिस्तान के सिंध में चोलिस्तान नहर परियोजना का तीखा विरोध हो रहा है। यह नहर ग्रीन पाकिस्तान इनीशिएटिव के अंतर्गत बनाई जा रही है और इसके अंतर्गत  सिंधु नदी के पानी को पंजाब के चोलिस्तान तक पहुचाया जाना है। सिंधियों को आशंका है कि इसके सिंध में पानी का भयंकर संकट पैदा हो सकता है। सिंधु जल संधि को स्थगित करने से पाकिस्तान में पानी का यह संकट और उसके कारण होने वाला संघर्ष और भी गहरा सकता है ।

बैसरन में आतंकियों ने नरसंहार के साथ भारत को कुछ स्पष्ट संदेश देने की कोशिश की थी। आतंकियों द्वारा पर्यटकों की उनका धर्म पूछकर हत्या, केवल पुरुषों की निशाना बनाने, कलमा पढ़ने और प्रधानमंत्री को सूचित करने जैसी बातें कहकर भारत को एक उत्तेजक संदेश भेजा गया था, ताकि वह हड़बड़ी में गलत कदम उठाने को बाध्य हो जाए। स्पष्ट है कि यह आतंकी हमले से अधिक भारतीय राज्य किया गया एक हायब्रिड हमला था। अच्छी बात यह है कि भारत इस आतंकी हमले को हायब्रिड हमला ही मान रहा है और इसका उत्तर भी हायब्रिड वॉरफेयर की शैली में दे रहा है। सिंधु जल संधि को स्थगित करना इसी बात की गवाही दे रहा है।

सिंधु जल संधि के स्थगित होने के बाद भारत 12 अप्रैल 2022 को तत्कालीन एअर चीफ मार्शल विवेक राम चौधरी द्वारा दिए गए उस वक्तव्य को ठीक ढंग से समझने की स्थिति था, जिसमें उन्होंने यह संकेत किया था कि भविष्य में पहली गोली चलने और पहले एअरक्राफ्ट को सीमा पार करने से पूर्व युद्ध का एक बड़ा हिस्सा लड़ा जा चुका होगा। अब भी कुछ विशेषज्ञ और आम नागरिक इस बात का कयास लगा रहे हैं कि भारत युद्ध में कब और कैसे जाएगा, जबकि यथार्थ यह है कि भारत युद्ध में निर्णायक प्रवेश कर चुका है।

हायब्रिड वारफेयर की यही विशेषता ही है कि इसमें युद्ध का निश्चित स्थल और समय नहीं रह जाता और न ही गोलाबारी युद्ध का एकमात्र संकेतक रह जाता है। इसमें आर्थिक, तकनीकी अथवा सैन्य मोर्चे पर कोई एक महत्वपूर्ण निर्णय लेकर उसे संचार-प्रक्रिया के माध्यम से इस तरह व्यापक और प्रभावी बनाया जाता है कि अराजकता की स्थिति पैदा हो जाती है अथवा प्रतिस्पर्धी की निर्णयन क्षमता पंगु हो जाती है । इस युद्ध शैली में सैन्य संघर्ष युद्ध का एक महत्वपूर्ण हिस्सा तो होता है, लेकिन सैन्य संघर्ष और युद्ध एकदूसरे के पर्याय नहीं रह जाते।    

सिंधु जल संधि को स्थगित कर भारत ने राष्ट्रीय सुरक्षा और जल-प्रवाह को एकदूसरे के साथ जोड़ने की कोशिश की है। उरी हमले के बाद ही भारत ने इस बात के संकेत दे दिए थे कि यदि आतंकी गतिविधियों को नहीं रोका गया तो भारत सिंधु जल संधि के बारे में नए सिरे से विचार कर सकता है। तब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसी तरफ संकेत करते हुए कहा था कि खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते। संभवतः तब पाकिस्तान ने इस कथन को गंभीरता से नहीं लिया था।

पहलगाम के बैसरन में हुई पर्यटकों की नरसंहार की घटना के बाद सिंधु जल संधि को स्थगित कर भारत ने अपरम्परागत लेकिन निर्णायक प्रत्युत्तर दिया है। यह निर्णय कितना घातक है इसका अंदाजा हायब्रिड वारफेयर की समझ के बिना नहीं लगाया जा सकता। इस निर्णय के माध्यम से भारत ने यह भी संकेत दे दिया है कि वह हायब्रिड वारफेयर के जटिल युद्धशैली को न केवल समझता है बल्कि इसका सामना करने के लिए आवश्यक दक्षता भी उसके पास है। आवश्यकता हायब्रिड वारफेयर के जटिल और विकाशसील यथार्थ को आम भारतीयों तक पहुंचाने की है, ताकि वे शत्रु के छलावों से सजग रहें और अपने देश के निर्णयों को सही आकलन भी कर सकें।  

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