संवाद को दैवीय धरातल प्रदान करता है मंडी का देव महाकुंभ

कलियुग में भी धरती पर देवताओं का महाकुंभ हो सकता है, इसका प्रमाण देवभूमि हिमाचल प्रदेश के छोटी काशी के नाम से विख्यात मंडी जिला मुख्यालय पर हर साल शिवरात्रि को देखने को मिला है। छोटी काशी मंडी में हर साल महाशिवरात्रि पर्व पर सैंकड़ों देवी-देवता शिरकत करते हैं और लगभग एक सप्ताह तक देवताओं और वाद्ययंत्रों की मधुर ध्वनि से छोटी काशी मंडी मदमग्न होती है। हर साल देवी-देवता यहां आकर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से देव संवाद करते हैं, जिसका गवाह हजारों श्रद्धालु बनते हैं। हर साल महाशिवरात्रि पर्व पर देवभूमि हिमाचल का मंडी शहर देवों के देव महादेव के उत्सव के कारण सुर्खियों में रहता है। प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी में पुरातन संस्कृति और देवताओं के अद्भुत मिलन के कारण यहां हर जगह देवी-देवताओं के आगमन से माहौल भक्तिमय होता है। फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी से प्रारंभ होने वाले इस उत्सव में आने के लिए 216 से अधिक देवी-देवताओं को रियासत काल से न्योता दिया जाता है। मंडी जनपद के आराध्य देवता देव कमरूनाग के आगमन से शिवरात्रि से एक दिन पूर्व उत्सव का विधिवत आगाज होता है। इसके अलावा महाशिवरात्रि उत्सव का प्रमुख आकर्षण देवताओं की शोभायात्रा (जलेब) होती है। इसे राज देवता माधो राय की जलेब भी कहते हैं। शिवरात्रि के आखिरी दिन देव कमरूनाग मेले में आकर सभी देवताओं से मिलते हैं, वहीं पर उत्तरशाल के ही एक व प्रमुख देवता आदिब्राह्मण का गूर भी शहर की रक्षा व समृद्धि की कामना से कार बांधता है। साथ ही अंतिम मेले की पूर्व संध्या पर राजा के बेहड़े अर्थात महल में देव पराशर व देव शुकदेव ऋषि की जाग भी होती है। जाग में देव पराशर ऋषि के गुर लोगों से संवाद के माध्यम से आने वाला वर्ष कैसा रहेगा, इसका उल्लेख भी करते हैं। छोटी काशी मंडी के शिवरात्रि महोत्सव की शुरुआत के बारे में कई मान्यताएं हैं। एक मान्यता के अनुसार 1788 में मंडी रियासत की बागडोर राजा ईश्वरीय सेन के हाथ में थी। मंडी रियासत के तत्कालीन नरेश महाराजा ईश्वरीय सेन, कांगड़ा के महाराज संसार चंद की कैद में थे। शिवरात्रि के कुछ ही दिन पहले वह लंबी कैद से मुक्त होकर स्वदेश लौटे। इसी खुशी में ग्रामीण भी अपने देवताओं को राजा की हाजिरी भरने मंडी नगर की ओर चल पड़े। राजा व प्रजा ने मिलकर यह जश्न मेले के रूप में मनाया। महाशिवरात्रि का पर्व भी इन्हीं दिनों था व शिवरात्रि पर हर बार मेले की परंपरा शुरू हो गई। वहीं, एक अन्य मान्यता के अनुसार मंडी के पहले राजा बाण सेन शिव भक्त थे, जिन्होंने अपने समय में शिवोत्सव मनाया। बाद के राजाओं कल्याण सेन, हीरा सेन, धरित्री सेन, नरेंद्र सेन, हरजयसेन, दिलावर सेन आदि ने भी इस परंपरा को बनाए रखा। अजबर सेन, स्वतंत्र मंडी रियासत के वह पहले नरेश थे, जिन्होंने वर्तमान मंडी नगर की स्थापना भूतनाथ के विशालकाय मंदिर निर्माण के साथ की व शिवोत्सव रचा। छत्र सेन, साहिब सेन, नारायण सेन, केशव सेन, हरि सेन, प्रभृति सेन राजाओं के शिवभक्ति की अलख को निरंतर जगाए रखा। राजा अजबर सेन के समय यह उत्सव एक या दो दिनों के लिए ही मनाया जाता था। राजा सूरज सेन (1637) के समय इस उत्सव को नया आयाम मिला। ऐसा माना जाता है राजा सूरज सेन के 18 पुत्र हुए। यह सभी राजा के जीवन काल में ही मृत्यु को प्राप्त हो गए। उत्तराधिकारी के रूप में राजा ने एक चांदी की प्रतिमा बनवाई, जिसे माधोराय नाम दिया। राजा ने अपना राज्य माधोराय को दे दिया। इसके बाद शिवरात्रि में माधोराय ही शोभायात्रा का नेतृत्व करने लगे। राज्य के समस्त देव शिवरात्रि में आकर पहले माधोराय व फिर राजा के पास हाजिरी देने लगे। इसके अलावा आज भी राजा परिवार के दरबार में कई देवी-देवता जाते हैं और आज भी राज परिवार के मुखिया से समक्ष झुकते हैं। कहा जाता है कि देवता भी जिस राजा के रियासत में निवास करते हैं, वहां के राजा के प्रति सम्मान स्वरूप ऐसा करते हैं। फाल्गुन में बर्फ के पिघलने के बाद वसंत ऋतु शुरू होती है। ब्यास नदी में बर्फानी पहाडियों के निर्मल जल की धारा मंडी के घाटों में बहने लगती है, फाल्गुन का स्वागत पेड़-पौधों की फूल-पत्तियां करने लगती हैं। देवलू अपने देवता के रथों को रंग-विरंगा सजाने लगते हैं तो नगर के भूतनाथ मंदिर में शिव-पार्वती के शुभ विवाह की रात्रि को मंडी नगरवासी मेले के रूप में मनाना शुरू करते हैं। लोग महीनों घरों में बर्फबारी व ठंड के कारण दुबके रहने के बाद वसंत ऋतु का इंतजार करते हैं तथा वसंत में जैसे ही शिवरात्रि का त्योहार आता है तो वे सजधज कर मंडी की तरफ कूच शुरू कर देते हैं। वहीं, छोटी काशी मंडी में शिव व शक्तियों के 81 मंदिर हैं। इनमें बाबा भूतनाथ, अर्धनारीश्वर  भी शामिल हैं। यहां भगवान शिव के सभी मंदिर शिखर शैली में मौजूद हैं वहीं पर शक्तियों के मंदिर मंडप शैली में हैं। मंडी में भगवान शिव के 11 रुद्र रूप जबकि नौ शक्तियां हैं। छोटी काशी के नाम से विख्यात मंडी की शिवरात्रि शैव, वैष्णव व लोक देवताओं का पर्व है। शैव मत का प्रतिनिधित्व मंडी नगर के अधिष्ठाता बाबा भूतनाथ करते हैं। वैष्णव का प्रतिनिधित्व राज देवता माधोराय व लोक देवताओं की अगुवाई बड़ा देव कमरूनाग, हुरंग नारायण व देव पराशर आदि देवता करते हैं। अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव में देवी-देवताओं को उनके रुतबे के हिसाब से राशन का पैसा मिलेगा। मेला कमेटी के पास 216 देवी-देवता पंजीकृत हैं। रुतबे के हिसाब से इन देवी-देवताओं को नौ श्रेणियों में बांटा गया है। प्रथम श्रेणी में चार आराध्य देवों को रखा गया है। इनमें शिवरात्रि महोत्सव के आराध्य देव कमरूनाग भी शामिल हैं। द्वितीय श्रेणी में 78 देवता हैं। इन देवी-देवताओं के देवलुओं को राशन के लिए सात हजार रुपये दिए जाते है।। तृतीय श्रेणी में 45 देवता हैं जिन्हें पांच हजार रुपये तथा चतुर्थ श्रेणी के 40 देवी-देवताओं को राशन के लिए तीन हजार रुपये देते हैं, बाकि श्रेणियों के देवताओं को महोत्सव के दौरान राशन का 25 सौ रुपये देने का प्रावधान जिला प्रशासन की ओर से की जाती है।

घाटी के अनुसार देवी-देवताओं के रथ की शैलियां भी अलग

महाशिवरात्रि महोत्सव में आने वाले देवी-देवताओं के रथ की शैली भी घाटियों के अनुसार अलग-अलग है। मंडी शहर में रिसायत काल शुरू हुए इस शिवरात्रि महोत्सव में मुख्य रूप से सराज घाटी, बल्ह घाटी, बदार घाटी, स्नोर घाटी, चौहार घाटी, नाचन सहित आसपास के क्षेत्रों के देवी-देवता आते है। उपरोक्त घाटियों से आने वाले देवी-देवताओं के रथ की शैली घाटियों के अनुसार भिन्न-भिन्न हैं। इसके अलावा अलग-अलग घाटी के देवी-देवताओं के वाद्य यंत्रों की धुन और वाद्य यंत्रों को बजाने की विधियां भी हैं। अधिकत्तर देवी-देवता अपनी घाटी के देवी-देवताओं के साथ पहले दिन मिलन करते हैं, उसके बाद अंतिम दिन चौहाटा बाजार की जातर के बाद मिलन के साथ फिर विदाई लेकर अपने-अपने गंतव्य की ओर प्रस्थान करते हैं।

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